''मन चंगा तो कठौती में गंगा'' यह मुहावरा अक्सर हमारी जुबान पर रहता है। यह गुरु रविदास जी के शब्द थे। अगर आपका हृदय शुद्ध है, तो नहाने के लिए बाल्टी का जल पवित्र है। पवित्र स्नान करने के लिए आपको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। आज इन्हीं गुरु रविदास जी की जयंती के 646 साल पूरे हो रहे हैं। इसके अलावा मुंबई में, देश के सबसे बड़े कल्चरल इवेंट्स में एक, काला घोड़ा फेस्टिवल भी शुरू हो चुका है। आइए इस दिन की खासियत के साथ, लौट रहे इतिहास के खास लम्हों के साथ आगे बढ़ते हैं। आज 5 फरवरी को गुरु रविदास जयंती है, और इतिहासकारों के अनुसार गुरु रविदास का जन्म 1377 C.E. के दौरान उत्तर प्रदेश के सीर गोवर्धनपुर गांव में हुआ था। महान कवि, संत और भक्त रविदास जी निम्न जाति के थे, लेकिन उनके जीवन पर जाति का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। रविदास जी भारत के उन महान लोगों में से एक हैं, जिनके विचार आज भी, हमें बड़ी सीख देते हैं। गुरु रविदास जी के न सिर्फ विचार, बल्कि उनके जीवन से जुड़ी कई महान और चमत्कारी घटनाएं आज भी सभी के प्रेरणा हैं। "गुरु ग्रंथ साहिब" में उनके 41 भक्ति गीत और कविताएँ हैं। उनके विचार आज भी संपूर्ण मानवता को सद्भाव सिखाते हैं। रविदास जी का जन्म निम्न जाति के परिवार में होने के कारण, लोग उन्हें अछूत मानते थे, लेकिन एक ऐसा समय आया, जब उनकी शिक्षाओं से प्रेरित होकर, ब्राह्मण, पुजारी और अन्य उच्च जाति के लोग भी गुरु रविदास जी के सामने झुकते थे। उनका मानना था कि जिस परिवार में भगवान का सच्चा भक्त है, वह न तो उच्च जाति है और न ही निम्न जाति, स्वामी और गरीब।"
आज, सभी अपनी जिंदगी में तेजी से भागना चाहते हैं, जिसके लिए शॉर्टकट भी लेते हैं। और इसी फास्ट ट्रैक पर चलते हुए, गलत, झूठ, धोखेबाजी और अहंकार जैसी चीजें अनुभव करते हैं। गुरु रविदास जी का मानना था कि निर्मल मन में ही भगवान वास करते हैं। अगर आपके मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है, तो आपका मन ही भगवान का मंदिर, दीपक और धूप है। दूसरों के लिए प्रेमभाव रखना, खुद को खुशी देता है, यह दूसरों से ज्यादा खुद पर एक बड़ा उपकार है। वरना, हम सब जानते हैं कि आज के अनसर्टेन और बिजी टाइम में, खुशियां तलाशनी पड़ती हैं। ऐसी ही खुशियों और एंजॉयमेंट के साथ एक बार फिर लौट आया है, काला घोड़ा कला महोत्सव। हर साल फरवरी के पहले शनिवार से शुरू होने वाला, यह फेस्ट, 12 फरवरी, रविवार तक चलेगा। वैसे भी, फरवरी का पूरा महीना प्यार, रोमांस और खुशियों की सेलिब्रेशन से भरा रहता है। साल 2023 में यह अनूठा कला उत्सव अपनी 23 साल की विरासत का जश्न मना रहा है। इसके इतिहास की बात करें, तो 30 अक्तूबर 1998 को साउथ मुंबई के कला और विरासत को बनाए रखने और संरक्षित करने के लिए इस फेस्टिवल को मनाने का डिसाइड किया गया, और साल 1999 में इसे पहली बार मनाया गया था। इस फेस्ट नाम प्रिंस ऑफ वेल्स- किंग एडवर्ड की ब्लैक हॉर्स की सवारी को इंडिकेट करता है। हालांकि, उस प्रतिमा को 1965 में ब्यकुला ज़ू में भेज दिया गया था।
अगर आप, मुंबई की 20 साल की कला और संस्कृति देखना चाहते हों, तो इस फेस्टिवल, में जरूर जाएं। 9 दिन के इस फेस्टिवल में राज्य का Dance, Cinema, Heritage, Literature, Music, Theatre और Visual Arts जैसी न जाने कितने एग्जिबिशन आपके एंटरटेनमेंट के लिए मौजूद हैं। और सबसे बड़ी बात यह है कि इस फैस्ट में जाने की टिकट बिलकुल फ्री है। हालाँकि, वहां बिक रही चीजें फ्री नहीं होंगी, इसलिए अगर आप वहां जा रहे हैं, तो अपना बजट बिगाड़ने के लिए तैयार रहिएगा। कहा जाता है कि एक दिन भगवान, एक संत के वेश में रविदास जी की झोपड़ी में आए और उन्हें पारस पत्थर भेंट किया, जिसके स्पर्श से लोहा, सोने में बदल जाता था। रविदास जी की कुटिया में वो पत्थर 13 महीने पड़ा रहा, लेकिन उन्होंने इसका इस्तेमाल नहीं किया। द रेवोल्यूशन- देशभक्त हिंदुस्तानी, की ओर से हम सिर्फ यही कहना चाहेंगे, कि गुरु रविदास जी का यह आचरण हमारे लिए हार्ड वर्क का एक बड़ा संदेश है। अपनी, आजीविका के लिए परिश्रम करना चाहिए, न कि कोई शॉर्टकट या गलत रास्ता अपनाना चाहिए।